Wednesday, 4 April 2018

तुझे चाहते रहने कि लत है मुझे!

तुझे चाहते  रहने कि लत है मुझे,
या मुझ पे छाया तेरा सुरूर है ।
पलके बंद होते ही खिलता है  चेहरा तेरा,
ये तेरा है  या मेरा कुसूर है।
तरसता रहता है एक झलक के लिए,
मेरा पागल दिल भी कितना मजबूर है।
उस तक भी नही  पहुच रही हैं दुयाएँ अब,
लगता है उसकी तरह खुदा भी दूर है । 

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.